मां विषहरी पूजा: बिहुला विषहरी की गाथा का साक्षी है अंग का इतिहास (original) (raw)
Hindi Newsबिहार न्यूज़भागलपुरhistory of Angh: Mother vishahari worship and Bihula is a witness of vishahari worship
मां विषहरी पूजा: बिहुला विषहरी की गाथा का साक्षी है अंग का इतिहास
आधी रात को मां विषहरी की प्रतिमा का पट खुलते ही पूजा शुरू हो गई है। इसको लेकर परंपरिक तरीके से एक माह पहले ही मंदिरों में इसकी तैयारियां शुरू हो गई थीं। बिहुला विषहरी के लोकगीत गूंजने लगे थे। लंबे...
भागलपुर, वरीय संवाददाता। Sat, 17 Aug 2019 01:53 PM
Share
आधी रात को मां विषहरी की प्रतिमा का पट खुलते ही पूजा शुरू हो गई है। इसको लेकर परंपरिक तरीके से एक माह पहले ही मंदिरों में इसकी तैयारियां शुरू हो गई थीं। बिहुला विषहरी के लोकगीत गूंजने लगे थे। लंबे समय तक इस परंपरा को महज एक गाथा माना जाता रहा, लेकिन अब कई लेखक मान चुके हैं कि अंग प्रदेश का इतिहास इस गाथा का साक्षी है।
वहीं समाजशास्त्री मानते हैं कि यह महज परंपरा नहीं बल्कि समाज की नजर में विशिष्टता और गौरव का भी विषय है। इसलिए नई पीढ़ी भी इस पंरपरा जुड़ती चली जा रही है। समाजशास्त्र के प्राध्यापक आईके सिंह कहते हैं कि भारत परंपराओं और मूल्यों का देश है। यहां जितनी धार्मिक या अच्छी सामाजिक परंपराएं हैं तथ्य, साक्ष्य, लोक कल्याणकारी मान्याता आदि के आधार पर उसकी जड़ें बहुत मजबूत हैं। इसलिए आधुनिकता हमारी अच्छी परंपराओं को मिटा नहीं पाती है।
वहीं इतिहासकार मानते हैं कि यह महज आस्था और परंपरा का संगम नहीं बल्कि इसमें इतिहास की झलकियां भी हैं। इसपर लगातार शोध भी हो रहा है। अब यह तथ्य सामने आने लगे हैं कि वाकई बिहुला विषहरी की कहानी भागलपुर क्षेत्र के इतिहास से जुड़ी है। पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य भी सामने आ रहे हैं। शायद इसलिए भी विषहरी पूजा के दौरान पूरी कहानी का चित्रण मूर्तियों एवं परंपराओं के जरिये किया जाता है।
विक्रमशिला के उत्खनन में मिले हैं साक्ष्य
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पूर्व निदेशक एवं भागलपुर के एतिहासिक विषयों पर लिखने वाले शिवशंकर सिंह पारिजात कहते हैं कि बिहुला विषहरी की कहानी को बंगाल में मनसा मंगल काव्य में जाना जाता है। एनएल डे ने अपनी किताब 'एनसिएंट ज्योग्राफी ऑफ इंडिया' में लिखा है कि विहुला विषहरी की घटना चंपानगर में घटित है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के उत्खनन में धातु की बनी विषहरी की दो मूर्तियां भी मिली थीं।
मंजूषा के जरिये देश दुनिया में पढ़ी जा रही गाथा
मंजूषा कला के जरिये देश दुनिया में बिहुला विषहरी की परंपरा दस्तक दे रही है। हाल ही में रेलवे ने विक्रमशिला की पूरी रैक पर मंजूषा पेंटिंग करायी है। वहीं सिल्क, लिनन और हैंडलूम कपड़ों पर मंजूषा की प्रिंटिंग पहले से हो रही है। इन कपड़ों की विदेशों में भी मांग है।
यह है बिहुला विषहरी पूजा की कहानी
बिहुला विषहरी की कहानी चंपानगर के तत्कालीन बड़े व्यावसायी और शिवभक्त चांदो सौदागर से शुरू होती है। विषहरी शिव की पुत्री कही जाती हैं लेकिन उनकी पूजा नहीं होती थी। विषहरी ने सौदागर पर दबाव बनाया पर वह शिव के अलावा किसी और की पूजा को तैयार नहीं हुए। आक्रोशित विषहरी ने उनके पूरे खानदान का विनाश शुरू कर दिया। छोटे बेटे बाला लखेन्द्र की शादी बिहुला से हुई थी। उनके लिए सौदागर ने लोहे बांस का एक घर बनाया ताकि उसमें एक भी छिद्र न रहे। यह घर अब भी चंपानगर में मौजूद है। विषहरी ने उसमें भी प्रवेश कर लखेन्द्र को डस लिया था। सती हुई बिहुला पति के शव को केले के थम से बने नाव में लेकर गंगा के रास्ते स्वर्गलोक तक चली गई और पति का प्राण वापस कर आयी। सौदागर भी विषहरी की पूजा के लिए राजी हुए लेकिन बाएं हाथ से। तब से आज तक विषहरी पूजा में बाएं हाथ से ही पूजा होती है।
अगला लेखऐप पर पढ़ें